वास्तव में ई विसर्जन का अभियान समुद्र लांघने जैसा है।
फिर भी हम लोग इस विस्वास के साथ समाधान की दिशा में कदम बढ़ा दिए है कि ईश्वर का कार्य है ईश्वर की रास्ता दिखायेगा।
और धीरे धीरे धुंध छट भी रही है।
एक बेहतर समाधान की राह दिख रही है।
अभी तक यह तो कहा जाता है कि मूर्तियों को इधर उधर ना रखे। परंतु कहा रखे, यह नहीं बताया जाता है।
मंगलमान ने इसी विकल्प को उतपन्न किया है।
नगर निगम तो अपने तरीके से ही काम करेगा।
अधिकांश सफाई कर्मचारी रोहिंग्या है जिनको हमारे आस्था और भावना से कोई मतलब नहीं।
उनके लिए मूर्ति और कूड़ा एक जैसा ही है।
और हो क्यों ना?
जब हमने ही इसका ध्यान ना रखते हुए लावारिस छोड़ दिया है तब वे क्यों चिंता करे।
उन्होंने घोषणाएं तो लंबी छोड़ी कि परंतु क्रिया रूप में 10% भी अधिक कहा जायेगा।
जो भी हो
कई फोन आते है यह जानने के लिए कि हमारे यहां की मूर्तियां कब ले जाई जायेगी?
उनसे हमारा अनुरोध यही है कि थोड़ा धैर्य रखें,
थोड़ा विलम्ब हो सकता है परंतु गाडी अवश्य जायेगी समाधान अवश्य निकलेगा।
देवदुर्लभ कार्यकर्त्ता,
मंगलमान संकल्प एवं
श्री हनुमान जी
हमारे साथ है
प्रो० राम कुमार, संयोजक मंगलमान