सामाजिक सद्भाव क्यों और कैसे?

सद्भाव ~ समाज मे
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क्या इतना बड़ा विषय है कि ❓❓
सद्भाव किससे ❓❓
विद्वानों का मत है कि न्याय करने से अधिक न्याय होते दिखना चाहिए ??
सद्भाव किनके बीच पहली प्राथमिकता ❓❓❓
सद्भाव के आवश्यक तत्व ❓

भारतीय समाज में अनेक आभासी विरोधाभास भी विविधतायें भी।
क्या ये सद्भाव केवल विभिन्न पंथो के मध्य या हमारे समाज मे स्वतः स्फुटित जातियो के मध्य। हमको प्राथमिकता तय करना होगा। या सभी के बीच
तो पहल कहां से ❓❓
राष्ट्रीय आवश्यकता तो अनुभव मे आता है, कि राष्ट्र तो समविचार , समसांस्कृतिक व समव्यावहार से निर्मित भूभाग होता है

तो पुनः वही प्रश्न , कि हमारी प्राथमिकता ? क्या स्व संस्कृति के अनुयायियों के परस्पर विश्वास को ऊर्जावान बनाए रखना ही होना चाहिए।

वैसे हम हिन्दुओं का प्रार्कतिक रूप कुछ विचार ही ऐसा बन गया है कि सभी पंथो के लोगो से अधिक प्रेम करते है और प्रकट भी करते है

हम हिन्दू तो सभी जैन बन्धुओं , सभी सिख बन्धुओं व सभी बौद्ध बन्धुओं को सनातनी व स्वजन मानते है उतना ही विश्वास भी करते है सिख [ खालसा पंथ] पर अटल विश्वास व गर्व का अनुभव करते है

आये दिन स्वात्मा ~ सर्वात्मा व राष्ट्र आत्मा को चोटिल करने वाले समाचार दिखाई व सुनाई पड़ते है। कि हमारे ही पराए हो गये। ऐसे लोग या लोगो के समूह के चित्र दूरदर्शन व अन्य मीडिया मे दिखाई देते है, किन्तु ऐसे लोगो की भीड़ मे न कोई उत्साह न उमंग और न ही चेहरे के भाव से ऐसा प्रतीत होता कि वे अपनी आस्था परिवर्तन से प्रशन्न है हा एक कुन्ठा, मायूसी, क्रोध या अन्य ज्ञात अज्ञात भय – लालच व लाचारी अवश्य दिखाई देती है।
मोटे तौर पर जो कथन सामूहिक रूप से समक्ष है वह धार्मिक मान्यताओ के अनुपालन , परंपराओ के निर्वहन , अवैज्ञानिक चितंन के अतिरिक्त सबसे अधिक चूक कि महान धार्मिक ग्रंथो मे समाई पूर्णतया वैज्ञानिक व व्यावहारिक अवधारणा का “स्वहित” मे या अनजाने मे अवैज्ञानिक व अव्यावहारिक व्याख्या ✍✍

?? समय चीखकर पुकार रहा है कि विद्वतजन उठो जागो और समाज का मार्गदर्शन कर लक्ष्य सिद्ध करो ।
आस्था व विश्वास के अनूठे महान ग्रंथो की वास्तविक वैज्ञानिक व्याख्या से सभी का सर्वसुलभ परिचय कराया जाए। वैसे कुछ विषयो पर हम अगले लेख मे वास्तविक स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे ??

✍✍ जहां तक अनुभव मे आता है तो अन्य सभी प्रयास के अतिरिक्त सर्वाधिक शक्ति (ध्यान) हम सभी सनातन समाज की यह है कि-
सभी जागरूक राष्ट्र भक्त अपने स्वधर्म के स्वजनो मे परस्पर विश्वास के पुनर्स्थापन हेतु अपने अपने स्तर पर जोर- शोर से प्रयास प्रारंभ कर दे।
? तभी हम महान चितंक, विचारक व महान दार्शनिक परम पूज्य डा. केशव बलिराम हेडगेवार व परम पूज्य गुरु गोलवलकर जी के सपनो को साकार कर पायेंगे
और तभी हम नये भारत की राजनैतिक शक्ति परम आदरणीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी [ यशस्वी प्रधान मंत्री जी] के जी तोड़ परिश्रम के परिणाम को आकार लेने का लुत्फ उठा पायेंगे

?? प्राथमिक त्वरित उपाय ??
01~ ●राष्ट्र सर्वोपरी पर विश्वास करने वाले सभी बन्धु व भगिनी कृपया सदियो से अपने वंचित बन्धुओं से व्याक्तिगत मित्र बनाये। उनका यथाशक्ति सहयोग। उनकी सभी समस्याओ के निवारण मे सहायता।
पर्व त्योहार मे परस्पर सपरिवार मिलन●।
धार्मिक अनुष्ठानो मे सम्मान पूर्वक आमंत्रण व साथ-साथ भोग प्रसाद ग्रहण आदि

02 ~ ● अपने धार्मिक ग्रंथो के सर्व स्पर्शी, सर्वग्राही, सर्व हितषी व द्रढ समभाव विश्वास के ज्ञान से परिचय।
अध्ययन कर परस्पर ज्ञान का आदान-प्रदान●

03 ~ ●सभी सनातनी प्रत्येक स्थान पर अपने वाणी व व्यावहार से समाज के वंचित वर्ग के प्रति सम्मानजनक आचरण ( बर्ताव)●

04~● भारत भूमि पर जन्मे सभी मत पंथ के प्रति समभाव व सम्मानजनक व्यावहार के साथ-साथ यह विश्वास रखना कि यह पंथ हिन्दुत्व के हित मे ही प्रकृति द्वारा प्रकट किए गये है।
उक्त के अतिरिक्त अन्य पंथो के साथ सामन्जस्य बनाने का प्रयास करते रहना।

05~● विभिन्न मत पंथ संप्रदाय के प्रमुखों के साथ नियमित मिलन एवम समाज व राष्ट्र हित मे सामूहिक चिंतन करना।

06~● सभी मत पंथ संप्रदाय अपने अपने अनुयायीयो मे भारतवर्ष की गौरवशाली परंपराओ प्रति आदर का भाव द्रढ़ करना।

07~●समय-समय पर सभी संप्रदायो की विषेश प्रार्थनाओं का सामूहिक सश्वर पाठ एवं सहभोज यथासंभव आयोजित करना। आदि ??

यह सनातन संस्कृति के सह अस्तित्व की आदिकालीन महान परंपराओ का मूलमंत्र व श्रेष्ठता का सूत्र है ??

विशेष आग्रह ~ इस एका अभियान मे समाज, सम्मानित संत समाज, शिक्षालयो व देवालयो का योगदान अत्यंत श्रेयस्कर होगा

?? सहअस्तित्व की शक्ति का जब श्रव्य द्रष्य प्रकटीकरण साकार होगा तभी सशक्त भारत अखण्ड भारत व समर्थ भारत का ध्वज ?? सम्पूर्ण विश्व मे लहर लहर लहराएगा??

?? राम काज करिबे को आतुर ??

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                       *आपका*
                       डा• धनंजय  
             [ स्वयंसेवक एवं शिक्षक]

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