प्रकृति ने बनाया; एक अद्भुत धरा को,
नदियों से सजाया; पर्वतों की शृंखला को;
पौधों से भरा था; फल-फूल भी लदा था,
ऐसी सुसज्जित बगिया; मानव को मिला था
प्रकृति ने बनाया;…..
सूरज की ऊर्जा से सभी थे प्रफुल्लित;
चाँद की शीतलता कर रही थी हर्षित;
नदियों की कल कल, पवन की हलचल
बारिश की अठखेलियों में, पौधे भी थे चंचल;
प्रकृति ने बनाया’’’’’
युगों युगों में आया एक युग ये “कलयुग”
स्वार्थ-जाल अपना, जब मानव ने बिछाया
प्रकृति था अचंभित, धोखा हुआ ये भारी
लाया था जिसे, देकर बौद्धिक क्षमता
उसी ने वार करके, लम्बी है घात मारी !
प्रकृति ने बनाया ..
विकास की डगर पर वृक्षों को काट डाला
पर्वत भी काट डाले, धरा भी भेद डाला
कचरे की बला से नदियों को पाट डाला
प्रदूषण की जलजला से अम्बर भी भेद डाला
खनिज लूट में, धरा ही बेंच डाला
प्रकृति ने बनाया ..
प्रकृति की तबाही से संतुलन बिगड़ चुका हैं
असंतुलन की पीड़ा से सारा जहां कुपित है,
पर्यावरण भी कुपित है पेंड-पौधे भी कुपित है
इन सबकी सहगामिनी वायु भी कुपित है
प्रकृति ने बनाया ..
कुपित हो के सूरज ने, आँख है दिखाई
शोलों की वर्षा ने, सौर्य मण्डल है जलाई,
प्रदूषण की सच्चाई ने मृत्यु दर है बढाई,
सारे जहां की पीड़ा ने महाप्रलय है मचाई !
प्रकृति ने बनाया ..
जिम्मेदारियों से, मुंह मोड सो रहा है,
कदाचित कोई आकर, जादुई छड़ी देगा,
सब कुछ वही करेगा; सारा गम दूर होगा !
सरकार को ही दोषी, मानता है सदा ही;
किया धरा सब खुद का, किस्मत को रो रहा है
प्रकृति ने बनाया ..
उठ जाग अब ऐ मानव ! कुम्भकरणीय निद्रा से;
संकल्प ले चलने का, कर्मपथ की डगर पर
माना कि इस पथ पर, कंटक हैं सारे बिखरे,
फिर भी चलना होगा, लक्ष्य के सहारे
रुकना ना तू तब तक, झुकना भी ना तब तक
चलते ही रहना होगा धरा के सृजन तक ,
प्रकृति ने बनाया ..
पूज्यनीय है धरा ये, संकल्प हो सभी का,
धरा को है सजाना, वृक्षों को है लगाना
प्रदूषण है मिटाना , कचरे को ना जलाना
कचरे की रीसाइकल का वंदन सभी से करना;
मिल-जुल कर है निभाना,दायित्व है सभी का,
प्रकृति ने बनाया ..
निर्जल हो चला है, गर्भ भी धरा का
धर्म है निभाना, अब जल संचयन का
सूखने लगी हैं, श्रद्धा की देवी नदियां
पूजन सभी को है करना, इनकी सफाई का
विशाल लक्ष्य है,प्रकृति के पुनरुत्थान का,
मिल-जुल कर करें कर्म सब, वंदन है ये अरुण का
प्रकृति ने बनाया ..
अरूणेन्द्र कु. श्रीवास्तव ‘अरुण’
संस्थापक
सामाधान – पर्यावरण
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लखनऊ 226 021 उ.प्र.
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