आत्म रक्षा का मनोविज्ञान

मैं सक्षम हूं  , मैं योग्य हूं  ,मैं अवश्य सफल हूंगा ,  मैं जीतूंगा । मेरे असफल होने से मेरे परिवार , समाज व ईष्ट मित्रों का भी सम्मान घटेगा। इस प्रकार के भाव हमे निरन्तर आत्म शक्तिसंपन्न करते है।

*जो होता है होने दो, यह पौरुष हीन कथन है*
*जो हम चाहेंगे वह होगा, इसमे ही जीवन है*  ??
*संकल्प*
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  ● आत्म रक्षा  >  आत्म गौरव ●
  ● राष्ट्र रक्षा    >  राष्ट्र गौरव    ●

*आत्म रक्षा के आवश्यक तत्व*
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आत्मावलोकन ।
आत्म चितंन ।
आत्म विश्वास ।

*आत्मावलोकन* —  स्वयं की पहचान करना,  स्वयं का मूल्यांकन करना,  लक्ष्य निर्धारित करना,  बाधक तत्वो [ कमियो कमजोरियों ] का परित्याग करना। ।
अपनी क्षमताओं के अनुरूप लक्ष्य निर्धारित करना तो सही हो सकता है। किन्तु  हमारी विकास यात्रा के लिए क्षमताओं मे वृद्धि एक सकारात्मक व हमारी सनातन विचारधारा के अनुरूप होगा। ।

*आत्म चितंन*
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कभी-कभार हम शान्ति भाव से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करते है। चिंतन करते हैं,  कि अमुक कार्य करने जा रहे हैं वह कितना उचित होगा तो हमारे मन में सकारात्मक व नकरात्मक विचार आयेगे। इस प्रकार  की संभावनाओं के आधार पर निर्णय  हमारी बौद्धिक तार्किक क्षमताओं का  परीक्षण ही नही करता बल्की उसमे वृद्धि भी करने मे सफल होता है।
इस प्रकार हम अपनी कमियो को दूर करने, किसी भी प्रकार के क्रोध, लोभ, लालच व आसक्ति पर नियंत्रण कर उचित मार्ग प्राप्त कर सकते।
अनुभवी जन सदैव कहते आय है कि कुछ बोलने के पूर्व उसे तोल लेना चाहिए।
यही सर्वश्रेष्ठ चितंन हो सकता है। ।

*आत्म विश्वास/ द्रढ़ संकल्प*
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~  सत्य घटनाक्रम ~
यह हम सभी का विश्वास है और वैज्ञानिकता के आधार पर भी मान्य है। कि जननी ( मां ) संस्कृति व संस्कारो की होती है। वह श्रेष्ठ संस्कारो से पीढ़ियो  को ऐसा रस रसायन का पान कराती है,  की संतान आत्म बोध, आत्म बल व आत्म विश्वास से जीवन पर्यन्त पुष्ट रहती है।
वैसे तो भारत के भूभाग मे राष्ट्र को गौरवान्वित करने वाली मातृ शक्ति से  इतिहास पटा पड़ा है।
किन्तु यहां पर एक ऐसी कन्या जिसका विवाह मात्र छह वर्ष की आयु मे सम्पन्न हुआ। जो भविष्य मे अपने दृढ विश्वास व आत्म विश्वास के बल पर हिन्दू पद पादशाही के शिल्पी *शिवाजी महराज* की माता  *जीजाबाई* के नाम से जानते है।
माता जीजाबाई के आत्म विश्वास व दृढ संकल्प से संभव हुआ एक ऐसा वीर योद्धा जिसने मात्र 17 वर्ष की आयु मे ही रण क्षेत्र में अपने युद्ध कौशल मे झंडा गाड़ दिया।

*कालान्तर मे शिवा जी महाराज कुशल संगठन कर्ता वा देश धर्म के रक्षक रूप मे प्रतिष्ठित हुए* ??
*अतः आत्म विश्वास वह ईश्वरीय शक्ति है जिसे हम साधना/तपस्या के आधार पर अपने मानस पटल को सुदृढ़ कर सकते [अर्जित कर सकते] हैं। यह हमारी इच्छाशक्ति द्वारा नियंत्रित होता है* ??
आत्म विश्वास वृद्धि मे कुछ परिवेश ,  व्याक्तिगत रहन सहन,  शिक्षा ,साफ सफाई व अच्छे वस्त्र आदि भी सहायक होते है।

*आत्म रक्षा के कारक जो हमारे स्व को प्रभावित करते है*
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1- सुजननिकी  [ eugenics ]
2 – सौपरिवेशिकी [ euthenics ]

*सुजननिकी* ——
श्रेष्ठ अनुवांशिक लक्षण व्याक्ति के बहुमुखी विकास के लिए स्पष्ट रूप से उत्तरदायी होते है। अनेक अध्ययनो से प्रमाणित किया जा चुका  है। ।

*सौपरिवेशिकी* — —

बढ़िया [गुणात्मक] परिवेश व परवरिश भी व्यक्तित्व के चहुंमुखी विकास को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते है । जीव वैज्ञानिक इस विषय को प्रमाणित कर चुके है। यहां तक की अनुवांशिक लक्षणो मे भी सुधार संभव है।
*उदाहरणार्थ*
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जिससे सभी परिचित हैं- कोचिंग संस्थान व बढ़िया- छात्रावास प्रतियोगी परीक्षाओं मे अपनी प्रासंगिकता प्रमाणित कर रहे ।

श्रेष्ठ प्रशिक्षण व परिवेश हमारे समग्र विकास मे साधक की भूमिका का निर्वाहन करते है  विश्व की सर्वोत्तम सेना का ओहदा *भारतीय सेना* को प्राप्त है। सेना मे संपूर्ण राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रो, विभिन्न वर्गो , विभिन्न रहन सहन व विभिन्न भाषा भाषाई भर्ती होते है ।किन्तु प्रशिक्षण से  राष्ट्र हित मे उत्कृष्ट रणबाकुरे, कौशल व सर्वोच्च बलिदानी सेना के रूप मे प्रतिष्ठित है। *सभी भारतवासियो का गौरव* ??
*आत्म रक्षा की बाधा*
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जब स्वयं को यह अह्सास, अनुभव या विश्वास हो जाए कि वह सामने वाले से कमतर है,तो वह खुद को कमजोर या हीन मानने लगता है।

~~~*✍ चेतावनी ~~~सतर्कता आवश्यक  ~~~ कही कुछ असामाजिक हो रहा उसका साहसिक विवेकपूर्ण विरोध न करना , कही कुछ गलत घटित हो रहा मुह फेर लेना,  समाज मे कही भी कुछ अव्यावहारिक हो रहा चुप रहना यह  अभ्यास पूरे समाज को भिरु व हीन भावना की महामारी से ग्रसित कर देता है*
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*हीनभावना या आत्महीनता के कारण*

विभिन्न स्तर के विद्यालयो मे ऐसे अनेक कारणो से अनेक विद्यार्थी या बीच मे पढ़ाई छोड़ने को मजबूर होते है या कुण्ठा व डिप्रेशन के शिकार हो जाते। कभी कभार इसके कारण हम शिक्षक भी होते है।
अकुशल विद्यालयी प्रबंधन व त्रुटिपूर्ण अनुशासन ही उत्तरदायी होता है।

*अन्य अनेक कारण जैसे सामाजिक, आर्थिक व लगातार उपेक्षा*

अपने देश मे पराधीनता के कालखण्ड ने तो मानो इस भाव वृद्धि मे तो सुनियोजित आक्रमण का स्वरूप धारण कर लिया था।
सामाजिक ताना बाना छिन्न कर डाला। हमारी परंपराओ – आस्था – शील – सम्मान कुचला गया।

*संस्कृति के क्षेत्र मे*
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हमारे अधिकांश आत्म गौरव के भव्य   अध्यात्मिक स्थलो [ऊर्जा केन्द्र , आत्मालय ” देवालय ” ] जिनके दर्शन से हमे एक ओर दिव्यता की अनुभूति  होती दूसरी ओर सर्वश्रेष्ठ सभ्यता का बोध होता उन्हे ध्वस्त किया गया।
अतिविशिष्ट शिक्षा के केंद्र, छात्रावास व पुस्तकालय जिनमे विश्व भर से विद्यार्जन को विद्यार्थी आते थे उन्हे नष्ट कर दिया गया।
*आर्थिक क्षेत्र में*
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उसी पराधीनता के दौर में हमारा जबरदस्त दोहन, शोषण व लूट हुई। देश का अर्थतंत्र  विकलांग हो गया। लोग कर्जदार बने। शोषण और कष्टप्रद होता गया। परिणामस्वरूप हम अपनी मर्यादा भी सुरक्षित रख पाने मे असमर्थ हो गये। परिणामतः निराशा ,अनिश्चितता व हीन भावना का गहन अंधकार ।

*सामाजिक क्षेत्र मे*
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सर्वाधिक हानि सामाजिक सद्भाव व समरसता को साजिशन पहुंचाई गई। हुआ यू कि हमारे ऊपर हमारे ही लोगो को लोभ लालच व सत्ता के विभिन्न स्तरीय पदनाम देकर एजेंट नियुक्त किए गए। इन्ही एजेंटो के माध्यम से भयंकर जुल्म ढाये गये। समाज मे वैमनस्यता व जातीय द्वैष फैलता चला गया।
परिणामस्वरूप हम अपनी प्रतिशोध की क्षमता खोते चले गए, लोगअपनीआस्था परिवर्तन को मजबूर किये गये। जिसका असर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भी देखने को मिला।
*लाखो लोगो को जन-धन हानि हमारा शील सम्मान को भयानक क्षति पहुचाई गई*

*किन्तु ❓❓❓*
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*भारतीय रक्त की लाली और सुर्ख प्रमाणित हुई, देश के विभिन्न क्षेत्रो से मातृभूमि की रक्षार्थ एक से एक महावीर व वीरांगनाओं ने अंतिम श्वास तक बढ़ चढ़कर युद्ध किये । विदेशी आक्रांताओ के छक्के छुड़ा दिये

? *भारतीय इतिहास के उन स्वर्ण पृष्ठो का संक्षिप्त व्याख्यान जो हमे सदैव गौरव की अनुभूति कराते रहेगे और आज भी राष्ट्र का मार्गदर्शन कर रहे है। आवश्यक है~यथा~*

*नवमंबर 1659 की बात ~* क्षत्रपति शिवा जी महाराज* लगातार युद्ध जीत रहे थे। बीजापुर के शासक आदिल शाह आदेश हुआ कि शिवा जी को पकड़कर लाया जाए। सभा मे उपस्थित कोई भी उत्तर न मिला किन्तु अफजल खांन उत्साह पूर्वक तैयार था।
  विशालकाय अफजल खांन दस हजार सेना लेकर निकल पड़ा। रास्ते मे लूटपाट हिंसा तांडव करते आगे बढ़ रहा था। मार्ग मे शिवा जी महाराज की कुल देवी मां  तुल्जा भवानी का मंदिर सहित अनेक मंदिर तोड़ा।
जावली के जंगलो मे स्थित दुर्ग मे डेरा जमाये शिवा जी महाराज को संदेश भेजकर उनसे को कहा गया।
*कोयला नदी के निकट प्रतापगढ़ के जंगल मे सशर्त मिलना तय हुआ* ।
( संदर्भ- शिवाजी ऐन्ड हिस टाईम्स- व्याख्यान रमन भरद्वाज धोखा)
*बेमिसाल– सतर्कता/आत्म रक्षा*
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अफजल खांन व शिवाजी महाराज के मध्य काफी देर तक वार्ता चली तदुपरांत दोनो महारथी उठ पड़े दैत्याकार अफजल खांन ने बांहे फैलाई, शिवाजी भी बढ़कर गले लगे किन्तु ? अफजल खांन ने एक हाथ से शिवाजी महाराज की गर्दन लपेट दूसरे हाथ खंजर से शिवाजी की पीठ  पर वार। सतर्क शिवाजी बाये पंजे मे पहने बघनख से अफजल खांन की कोख फाड़कर अतड़िया बाहर कर दी। इस प्रकार अपनी *आत्म रक्षा* ही नही की बल्कि भारतवासियो का *मनोबल* भी ऊंचा किया।

*— 27 सितंबर 1925*
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स्थान नागपुर एक सामान्य (निर्धन) परिवार मे जन्मे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्वान चिकित्सक- बाल्यकाल से ही **पराधीनता से छुटकारा पाने के लिए संघर्षरत परम पूज्य डा• केशव बलिराम हेडगेवार जी* हिन्दुओं की घोर उपेक्षा, गिरते मनोबल के कारण स्व रक्षा [ आत्मरक्षा] मे कमी को महसूस  किया। दृढ संकल्प लेकर चिंतन कर एक छोटे से कक्ष मे कुछ महानुभावो के साथ विचार-विमर्श कर हिन्दुओं को संगठित करने के उद्देश्य से संगठन बनाने का निश्चय। *जिसे आज पूरा विश्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से परिचित है* ।। जो हिन्दू समाज मे समरसता, जागरूकता व निस्वार्थ भाव से सेवाधर्म का निर्वहन करते हुए समस्त  भारतवासियो मे राष्ट्र भाव का सशक्त स्वर है।
*विश्व का सबसे बड़ा स्यमं सेवी संगठन के रूप मे प्रतिष्ठित है*। ??
*भारत माता की जय*

                                  डॉ•धनंजय
                          8604783076

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