‘‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’’ लाउडस्पीकर पर अमिताभ बच्चन की गायी हुई हनुमान चालीसा बज रही थी। केसरिया रंग के पंडाल के पर्दे हवा से मानो झूम कर नृत्य कर रहे थे। काउन्टर के एक तरफ हनुमान जी की फ्रेम की हुई फोटो, जिस पर माला चढ़ी थी। काउंटर के पीछे कई लोग श्रद्धालुआें को पूड़ी-सब्जी, बूंदी, शरबत व पानी बाँट रहे थे। काउन्टर के दूसरी तरफ़ लगी भीड़ में सब एक दूसरे का ध्यान आकृष्ट कर पहले भोजन पाने की चेष्टा कर रहे थे, जो भोजन पा जाता वह बड़ी मुश्किल से भीड़ के कोने तक निकलकर वहीं पर ही भोजन खाने लगता। भीड़ के तीन तरफ़ पहले खाना पाये लोगों की डिस्पोजेबल प्लेटें व कटोरियाँ, प्लास्टिक के ग्लास और अधखाया भोजन ज़मीन पर पड़ा था। सब उन पर पैर रखकर आये बढ़ रहे थे।
ताऊजी व ताईजी को एयरपोर्ट से घर तक लाते समय सड़क के दोनों ओर अनेक भंडारों पर निशा और संध्या को यही दृश्य देखने को मिला। हर भंडारे के स्थान पर लोगों ने सड़क पर आड़े-तिरछे स्कूटर, मोटर साइकिल और गाडियाँ पार्क कर दी थीं, जिसके कारण सारे रास्ते ट्रैफिक जाम भी रहा। घर पहुँचकर शुभा ताईजी बोलीं, ‘‘मुंबई से लखनऊ आना आसान है पर एयरपोर्ट से घर पहुँचने में तो बहुत समय लग गया।’’ निशा के घर के पास के चौराहे पर भी बहुत बड़े भंडारे का आयोजन था। अगले दिन निशा और संध्या ताऊजी व ताईजी के साथ सुबह-सुबह सड़क पर टहलने निकले। पिछले दिन के भंडारे का फेंका हुआ कूड़ा आधी सड़क पर था। प्लेटों में छोड़े हुये खाने को कुत्ते चाट रहे थे। सब तरफ़ मक्खियाँ भिनभिना रही थीं। प्लास्टिक के खाली गिलासों के बड़े-बड़े ढेर लगे थे। निशा ने ताईजी का दुपट्टा खींच कर नाक पर रखते हुये कहा, ’’यहाँ तो बहुत बदबू है। घर लौट चलते हैं।’’ ताईजी स्वयं बैंक में सीनियर अधिकारी थीं। अचम्भित होकर बोलीं, ’’मोहल्ले वाले कुछ करते क्यों नहीं? नगर निगम ने भी कूड़ा नहीं उठाया।’’ डिनर टेबल पर ताईजी ने फिर यही विषय उठाया। पापा ने बताया कि नगर निगम भंडारे के आयोजकों से 500 रूपये लेने लगा है, पर शायद इतनी बड़ी संख्या में भंडारे हो रहे हैं कि सब जगह उस दिन कूड़ा नहीं उठ पाता। ताईजी बोलीं, ’’पर भईया अगर आयोजक खाना बाँट सकते हैं तो कूड़े के लिये थोड़ी ज़िम्मेदारी उनकी भी तो है। अगर कूड़ा ड्रम में फेंका जाये तो उठाना भी आसान होगा और सड़क पर ज्यादा सफाई भी नहीं करनी होगी।’’ताऊजी ने कहा, ’’तुम्हें मालूम है कि बड़े मंगल पर भंडारों का आयोजन लखनऊ में ही होता है? इसकी कहानी भी प्रेरणादायक है।’’
निशा कूदकर ताऊजी की गोद में बैठ गई और कहानी सुनने की ज़िद करने लगी। हंँसते हुये ताऊजी निशा और संध्या को वरांडे में ले गये। तीनों झूले पर बैठ धीमे-धीमे झूलने लगे। ताऊजी ने कहा, ’’झूलने से खाना भी पच जायेगा, तब तक मैं तुम्हें बड़ा मंगल की प्रथा कैसे प्रारम्भ हुई, उसकी कई कहानियों में से एक सुनाता हूं।’’
ताऊजी ने बताया कि, ’’यह कहा जाता है कि अब से करीब 400 वर्ष पहले यह पर्व मनाया जाना शुरू हुआ था। अवध के शिया नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी आलिया बेगम को एक दिन सपने में हनुमान जी दिखे और उन्होनें वह स्थान बताया जहाँ उनकी मूर्ति ज़मीन में दबी है। आलिया बेगम ने मूर्ति की तलाश में अगले दिन से खुदाई शुरू करवायी। मूर्ति मिलने पर आलिया बेगम ने उसे एक हाथी पर रखवाया। जिस स्थान पर हाथी रूका वहीं पर हनुमानजी का मन्दिर बनवाया गया, जो आज अलीगंज में स्थित है। नवाब और बेगम के कोई पुत्र नहीं था। बेगम ने हनुमानजी से प्रार्थना की और मंगल के दिन उन्हें पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम मिर्जा मंगलू रखा गया। तब से ही ज्येष्ठ महीने के मंगलवार को बड़ा मंगल मनाने व भंडारे में गरीबों को भोजन आदि बाँटने की परम्परा आरम्भ हुई।’’
पापा भी वरांडे में आ गये और बताने लगे कि बचपन में बड़े मंगल की पूर्व संध्या पर निकाली जाने वाली राम बारात को वह भी देखने गये थे। एक बच्चा रामजी के रूप में रथ पर बैठता और बहुत सारे बच्चे लाल चेहरा और नकली पूँछें लगाकर वानर के रूप में बारात में खेलते-कूदते, शोर मचाते आगे चलते।
ताईजी और निशा की मम्मी ने तय किया कि अगले मंगल वह मोहल्ले में भंडारे का आयोजन करेगें। मम्मी ने भी उस दिन के लिये आफिस से छुटटी ली। रोज़ शाम को निशा के घर पर पड़ोसियों और मोहल्ले के सभी बच्चों की मीटिंग होने लगी। ताई जी ने कहा, ’’हम आदर्श भण्डारे का आयोजन करेंगे। आयोजन से किसी को असुविधा नहीं होनी चाहिए। यदि हम भण्डारे में खाना खाकर कूड़ा सड़क पर फेंकते हैं तो रोज़मर्रा के जीवन में भी फेंकते होंगे, सोच बदलने की आवश्यकता है’’।
मम्मी ने मीटिंग में कहा, ’’हम लोग पत्तल, दोने और लकड़ी के चम्मच का उपयोग करेंगे, प्लास्टिक या फाइबर की प्लेटों को कहते तो डिस्पोजेबल हैं, परन्तु वह तो हजारों वर्षों तक नष्ट नहीं होतीं। पानी पिलाने के लिए भी कुल्हड़ लेंगे। कुल्हड़ तो मिट्टी से बनते हैं, और कुम्हार को आमदनी भी होगी।’’
शालू आण्टी ने कहा, ’’अब तो कुल्हड़ मिलते ही नहीं।’’ मम्मी ने कहा ग्राहक जो वस्तु मॉंगता है, दुकानदार वह ही बेचते हैं। अगर हम सब कुल्हड़ खरीदेंगे तो मिलेंगे भी। कुल्हड़, प्लास्टिक के कप की तुलना में थोड़े महॅंगे होंगे, परन्तु उनसे पर्यावरण को और अन्ततः हमें नुकसान नहीं पहुँचेगा, कूड़े की भी समस्या नहीं होगी।
सब तरफ आदर्श भण्डारे के आयोजन की चर्चा होने लगी। कुछ लोकल टी0वी0 वाले इण्टरव्यू लेने आये तो ताई जी ने कहा कि मंगल को आईयेगा- “Action speak louder than words” यानी करनी कथनी से ताकतवर होती है।
अगला बड़ा मंगल आ गया। मोहल्ले के पास के तिराहे पर, जहॉं सड़क थोड़ी चौड़ी थी और वहॉं सड़क के साथ-साथ बॉंयें और दायें दोनों तरफ़ काउण्टर लगे। दोनों काउण्टरों पर दो बच्चे हनुमान जी का वेश धर बैठे। मोहल्ले के बच्चों के मध्य ड्यूटी आवंटित थी-सड़क के साथ बच्चों के द्वारा चूने से खींची गयी लाइन के पीछे ही वाहन पार्क करवाने की और रस्सी बांध कर बनाये गये गलियारे में भोजन के लिए लाइन लगवाने की। कुछ बच्चे वानर बने हुए थे और भोजन खाने के उपरान्त सभी से ड्रम जैसे डस्टबिन में कूड़ा फेंकने का आग्रह करते। कुछ लोग बच्चों को फटकारते तो बच्चे विनम्रता से कहते, ’’लाईये मैं ’आपका कूड़ा’ फेंक देता हूॅं।’’
भोजन बॅंटने के स्थान पर बड़ा सा पोस्टर लगा था, जिस पर लिखा था-’’कृपया उतना ही भोजन लें, जितना आप खा सकते हैं। प्रसाद या भोजन फेंकना पाप समान है। कृपया कूड़ा कूड़ेदान में डालें और पवनपुत्र का आशीर्वाद प्राप्त करें।’’ जो बच्चे हनुमान जी बने थे, वह हर थोड़ी देर में भजन के बीच माइक से यही बात बार-बार दोहराते। अनेक लोग पत्तल और कुल्हड़ देख प्रसन्न हुए। कुछ ने कहा कुम्हारी कला को जीवित रखना चाहिए। कुल्हड़ से माटी की कितनी अच्छी खुशबू आती है। कई प्लास्टिक से तो कैंसर जैसी बीमारियॉं होने लगी हैं।
अखबार वाले, मीडिया, नागरिक सब आदर्श भण्डारे के आयोजन से दंग थे-इतना व्यवस्थित, करीब 90 प्रतिशत कूड़ा लोगों ने कूड़ेदान में ही डाला था, सफल पर्यावरण जागरूकता और सबसे बड़ी बात यह थी कि अधिकांश कार्य बच्चों ने किया। प्रशासन व ट्रैफिक के अधिकारी मिलकर जैसी व्यवस्था करते वैसी स्वयं नागरिकों ने की।
सब तरफ आदर्श भण्डारे की प्रशंसा हुई। अनेक लोगों ने प्रेरित होकर कहा कि हम भी ऐसा ही आयोजन करेंगे। केवल भोजन बॉंटना ही हमारी ज़िम्मेदारी नहीं, वरन् अपने शहर को गंदगी से बचाना भी है। जिलाधिकारी इतने प्रभावित हुए कि वह स्वयं मोहल्ले में मिलने आये। ताई जी और मम्मी, शालू आण्टी सभी बच्चों के साथ जिलाधिकारी ने फोटो खिंचवाई और प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि प्रशासन और स्वच्छता आम नागरिक के सहयोग के बिना संभव नहीं। इन छोटे-छोटे बच्चों ने स्वप्रशासन का उदाहरण दिया है कि नागरिक छोटी उम्र से ही बहुत कुछ कर सकते हैं।
मोहल्ले की तरफ़ से जिलाधिकारी को सुझाव पत्र दिया गया, जिसमें अनुरोध किया गया था कि बड़े मंगल के आयोजन से एक माह पूर्व प्रत्येक मोहल्ले में हर सप्ताह कौन-कौन कहॉं आयोजन करेगा, यह पहले से तय कर लिया जाये। बहुत समीप आयोजन न किये जायें। ज़्यादा आयोजक हों तो वह मिलकर आयोजन करें, आयोजकों की भी ज़िम्मेदारी हो कि स्वयं सेवक लगाकर पार्किंग कराये, खाना व्यर्थ न जाने दें, कूड़ा कूड़ेदान में ही अनुरोध कर डलवायें और डिग्रेडिबल पत्तल आदि का उपयोग करें।
शाम को निशा और संध्या जब परिवार के साथ आरती कर रहीं थीं तो उन्हें लगा कि आज हनुमान जी की मूर्ति ज़्यादा प्रसन्न थी।
साभार- डॉ0 अनिता भटनागर जैन, अपर मुख्य सचिव, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन, उत्तर प्रदेश शासन