भंडारा, जिसे अन्नदान भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अपने त्योहारों और उत्सव के दौरान आयोजित किया जाता है। इसके दौरान यज्ञ, हवन और भोजन प्रसादी का आयोजन किया जाता है। यह भोजन प्रसादी को भंडारा भी कहते हैं। भारत में त्योहारों पर समय-समय पर अलग-अलग स्थानों पर भंडारों का आयोजन किया जाता है, और भारत में बहुत से ऐसे मंदिर भी हैं जहाँ प्रतिदिन इस तरह के भंडारों का आयोजन किया जाता है। भंडारे का महत्व है क्योंकि यह सभी वर्गों के लोगों को एक साथ लाता है और समाज में समानता और भाईचारे का संदेश देता है।
भंडारे की परंपराएं भारतीय संस्कृति के विविध आयामों को दर्शाती हैं। यहां कुछ प्रमुख परंपराएं दी गई हैं:
– **सामुदायिक रसोई**: भंडारा अक्सर आश्रमों और मंदिरों में सामुदायिक रसोई के रूप में होता है, जहां जरूरतमंद भक्तों और राहगीरों को मुफ्त भोजन परोसा जाता है।
– **धार्मिक यज्ञों का हिस्सा**: प्राचीन समय में भंडारा पांच मुख्य यज्ञों में से एक माना जाता था, जिसमें धर्मयज्ञ, ध्यान यज्ञ, हवनयज्ञ, प्रणाम यज्ञ, और ज्ञानयज्ञ शामिल थे।
– **कबीर जी द्वारा भंडारा**: इतिहास में विश्व का सबसे बड़ा भंडारा का उल्लेख कबीर जी के समय मिलता है, जब उन्होंने काशी में 18 लाख साधु-संतों को तीन दिन तक भोजन परोसा था।
– **धन्यवाद और सेवा**: भंडारा अक्सर धनी लोगों द्वारा भगवान की कल्याणकारी सेवा के रूप में और भगवान को धन्यवाद देने के लिए किया जाता है।
– **सेवा भोज योजना**: भारत सरकार ने ‘सेवा भोज योजना’ नामक एक योजना शुरू की है, जिसके तहत धार्मिक संस्थानों को मुफ्त भोजन प्रदान करने के लिए कुछ उत्पादों के खरीद पर GST की प्रतिपूर्ति की जाती है।
ये परंपराएं न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक महत्व भी रखती हैं, जो समाज में समरसता और एकता को बढ़ावा देती हैं। भंडारे के माध्यम से लोग अपनी आस्था और दानशीलता का प्रदर्शन करते हैं, और यह समाज में सभी के लिए समानता और भाईचारे का संदेश देता है।