मंगलवार का भंडारा हम सभी स्वेच्छा से धार्मिक अनुष्ठान के साथ सेवा भाव को ध्यान में रख कर करते हैं इसमें हमारा स्वयं का भाव बिहित होता है किसी अन्य के दबाव के कारण हम नहीं करते साथ ही हम इसके निमित्त धन का समर्पण भी करते हैं ! भंडारे पर हम बहुत व्यय करते है पर स्वच्छता पर बिलकूल ध्यान नहीं देते शाम तक भंडारा स्थल जो दृश्य प्रस्तुत करता अत्यंत कष्टकर होता !
उक्त बाते विवेकानंद केंद्र से जुड़े एवं समाधान फाउंडेशन के सचिव श्री अरुणेंद्र कुमार श्रीवास्तव जी ने मंगलमान अभियान के उत्तर भाग, लखनऊ की योजना बैठक के समापन के अवसर पर स्वयंसेवको के मध्य कही।
भंडारा हम करते है पर स्वच्छता सरकार के भरोसे छोड़ देते है ऐसा क्यों ? हमारी थोड़ी से जागरूकता गन्दगी होने ही नहीं देगी ! कुछ लोगों का कहना होता शाम को सफाई कराई जाएगी ! मेरा अनुरोध होता गन्दगी होने ही क्यों दें ! गन्दगी करके फिर सफाई करें यह सर्वथा अनुचित है ! हम गन्दगी होने से रोक सकते हैं ! केवल हमें 2-1 लोगों को सचेतक के रूप में दायित्व देकर उचित कूड़ेदान की तथा उक्त सन्देश के बैनर की व्यवस्था करनी होगी !
साथ ही हमें भंडारे में ऐसे पात्रों (पत्तल दोनों और गिलास ) का प्रयोग किया जाना चाहिए जो आसानी से रीसायकल किया जा सके प्लास्टिक के पात्रों से सर्वथा बचना चाहिए !
यदि हम अनुष्ठान की पवित्रता से उस गन्दगी को जोड़ कर देखें तो क्या यह उचित लगता है कि जिस स्थान पर इतना भव्य धार्मिक अनुष्ठान हुआ वहां गन्दगी रुपी राक्षशी विकराल रूप लिए अट्टहास कर रही हो ! हमारे यहाँ हर धार्मिक अनुष्ठान के पश्चात् यज्ञ हवन का प्रावधान है जिससे बताने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती कि उक्त स्थल पर धार्मिक कार्य हुआ है उस यज्ञ की खुशबू स्वतः धार्मिक सन्देश देती है ! हमें ऐसा ही कुछ करना चाहिये जिससे कि वह स्थल अपने खुशबू से आकर्षित करे !
“मंगलमान अभियान समिति” ने मंगलवार-भंडारे को और भी सार्थक, सुनियोजित तथा स्वस्थ परम्परा बनाने का दायित्व निर्वहन करने का जिम्मा उठाया है जो एक अत्यंत विशाल एवं सराह्नीय कार्य है !
कदाचित भंडारे के दौरान की जा रही हमारी कुछ कमियों को उक्त समिति ने संज्ञान में लिया और उसमें सुधार और एकजुटता लाने हेतु इस अभियान का उदय हुआ !
हर अच्छाई को आत्मसात करें
यहाँ मैं गुरूद्वारे में निरंतर किये जा रहे लंगर का जिक्र करना चाहूँगा ! यह्लंगर भी कदाचित उसी धार्मिक अनुष्ठान और सेवा भाव को ध्यानमें रखकर किया जाता है हमें बहुत कुछ इस लंगर अनुष्ठान से सीखना चाहिए ! सेवा भाव की पराकाष्ठ इतनी कि वे आप के चप्पल–जूते को भी सहर्ष स्वीकार करते और वापिस करते हैं ! स्वच्छता की तो बात ही निराली होती है, जब कि लंगर बर्तनों में परोसे जाते है !
स्वच्छता आग्रह हेतु मैंने भी किया था एक छोटा प्रयास
2014-15 में मैंने भी एक छोटे से प्रयास से स्वछता आग्रह निम्न स्लोगन के द्वारा किया था
भंडारा हमारी आस्था है, तो स्वच्छता हमारी जिम्मेदारी !
2014-15 के दौरान हमारे प्रधान मन्त्री जी ने स्वच्छता का आवाहन किया था मैंने भंडारे स्थल पर शाम तक पसरे विशाल कचरे के ढेर को संज्ञान में लिया और 2-3 मंगलवार को शहर के विभिन्न स्थलों पर जा जा कर छोटे छोटे बैनर लगाये और उक्त आग्रह किया !
हमारे इस प्रयास से थोड़ी सुधार तो आई पर वह ऊँट के मुंह में जीरा के सामान थी ! जरूरत थी पक्के इरादे और दृढ निश्चय के साथ इस दिशा मे जागरूकता के लिए काम करने की मुझे प्रश्नता है कि उसे एक अभियान के रूप में मंगलमान अभियान के रूप में उक्त समिति ने अपनी जिम्मेदारी बनाई और आज भी उक्त दिशा में कार्यरत है जिससे एक सुनियोजित सुव्यवस्थित और स्वस्थ परंपरा का उदय हुआ है ! हम यह दायित्व है कि कदमताल के साथ इस अभियान के सहयोगी बनें !