ज्येष्ठ महीने का महत्व

हिन्दू कैलेंडर में ज्येष्ठ का महीना तीसरा महीना होता है. ज्येष्ठ का महीना वैशाख के महीने के बाद आता है.  माना जाता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है. इसलिए इस महीने को ज्येष्ठ नाम दिया गया है. अंग्रेजी कैलेंडर में यह महीना हमेशा मई और जून के महीने में ही आता  है।

इस महीने में सूर्य अत्यंत ताक़तवर होता है, इसलिए गर्मी भी ज्यादा होती है. सूर्य की ज्येष्ठता के कारण इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है. ज्येष्ठा नक्षत्र के कारण भी इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है.

सूर्य अपने भीषण स्वरूप में होते हैं, इस कारण पृथ्वी से जल का वाष्पीकरण बहुत तेजी से होता है। कई नदियां और तालाब इस माह में सूख जाते हैं। जल की कमी आने लगती है। ऐसे समय में हमें जल बचाने का संदेश देता है ज्येष्ठ मास। ज्येष्ठ मास में गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी जल का महत्व बताने वाले पर्व हैं। गंगा दशहरा पर गंगा और अन्य सभी पवित्र नदियों की पूजा की जाती है। निर्जला एकादशी पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी का व्रत किया जाता है। ये पर्व पानी की कीमत समझाते हैं और जल बचाने का संदेश देते हैं।

ज्येष्ठ माह की विशेषता क्या है ?

इस महीने में धर्म का सम्बन्ध जल से जोड़ा गया है, ताकि जल का संरक्षण किया जा सके. इस मास में सूर्य और वरुण देव की उपासना विशेष फलदायी होती है.

इस माह में वातावरण और शरीर में जल का स्तर गिरने लगता है.

अतः जल का सही और पर्याप्त प्रयोग करना चाहिए.  

सन स्ट्रोक और खान पान की बीमारियों से बचाव आवश्यक है.

इस माह में हरी सब्जियां, सत्तू, जल वाले फलों का प्रयोग लाभदायक होता है.

इस महीने में दोपहर का विश्राम करना भी लाभदायक होता है.

ज्येष्ठ के मंगलवार का क्या महत्व है?

ज्येष्ठ के मंगलवार को हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है.

इस दिन हनुमान जी को तुलसी दल की माला अर्पित की जाती है.

साथ ही हलवा पूरी या मीठी चीज़ों का भोग भी लगाया जाता है.

इसके बाद उनकी स्तुति करें.

निर्धनों में हलवा पूरी और जल का वितरण करें.

ऐसा करने से मंगल सम्बन्धी हर समस्या का निदान हो जाएगा.

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